शायरी मेरी रूठी रूठी सी है
पर शायर मैं रूठी नहीं ।
बेशक दरारे है कुछ
पर मैं पूरी टूटी नहीं ।
गम जब ज्यादा भरता है
कुछ थोड़ा था छलकता है
बेशक दरारे है कुछ
पर मैं पूरी टूटी नहीं !
कुछ बिखरी हुई खुशिया बटोर कर
दरारों पर प्लास्टर चढ़ाया है
बेशक दरारें है कुछ
पर मैं पूरी टूटी नहीं !
अंदर की सीलन से,
प्लास्टर भी झड़ने लगा है
देखते है कब तक टिकता है
बेशक दरारे हैं कुछ
पर मैं पूरी टूटी नहीं !
काश थोड़ा और वक़्त होता तेरे पास !
बातें तो दूर की बात है ,
अभी तो जी भर के देखा भी नही |
साँसों को रोक रखा था मैंने,
कहीं वो लम्हा उड़ा ना ले जाए!
चंद लम्हों मे लोग ज़िंदगी जी लेते हैं,
मैंने तो अभी साँस ली भी नहीं|
तेरी नज़र के उठने का इंतेज़ार करता रहा,
कहीं मेरी पलकें ना थक जायें,
लोग तो आँखों मे डूब जाते हैं,
मैंने तो निगाहें मिलाई भी नहीं |
हाथों से आँचल छूटने का इंतेज़ार करता रहा,
काश हवा उड़ा के मेरी ओर ले आए,
लोग तो हाथ थाम कर ज़िंदगी जी लेते हैं,
मैंने तो तेरा दुपट्टा तक छुआ नहीं |
काश थोड़ा और वक़्त होता तेरे पास !
जाते हुए पलट कर तो देखा होता
मैं खड़ा था वहीं, कहीं गया नही ||
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बाबुल मैं बेटी हूँ तुम्हारी
कोई बेज़ान गुड़िया तो नही
तुमने मुझे दुल्हन बना दिया
अब तक तो मैंने अपनी गुड़िया बियाही नही||
मुझे बोझ समझकर मुझपर बोझ डाल दिया
अब तक तो मैं चलना सीखी भी नही||
मैं तो खुशियाँ लेकर आई थी
तुमने मुझे ही रोता विदा कर दिया||
कम से कम बचपन तो जी लेने दो
अभी दादी नानी की कहानी सुननी है
मेरे भी तो कुछ सपने है
मुझे अपनी गुड़िया बिहनी है||
माँ तुम ही कुछ समझा दो
कुछ आप बीती ही याद कर लो|
तुम भी तो मेरे जैसी थी ,
क्या बचपन खोकर तुम खुश थी||
मैं तुम्हारा ही अंश हूँ
देखो मेरी आँखों में
जिनमें सिर्फ़ पानी है
अभी मत ब्याहो मुझे-
अपनी गुड़िया बिहनी है||
नदियाँ सूख गयी हैं
धरती पर आने लगी है दरारें
ममता के दूध के सहारे
बचपन कब तक ज़िंदगी गुज़रे!
ना कहीं छावों है
बस धूप मे सुलगते पावं है|
माँ की आँचल भी सूख गयी है
ये देखकर भी मेघ क्यू इतना निर्दयी है? 😦 😥
……..
पर आज लगता है 😀
लाचारी की चीख ने इंद्र की आँखें खोली है
आज तो बस सबको बूँदों से खेलनी होली है|
नदियाँ फिर से बह जाएँगी
दरारों से अंकुर फुट कर निकलेंगे
आँचल की ठंडक लौट कर आएगी
आज सारी बूँदों को दामन मे अपने समेट लेंगे!
अश्कों से पहले की आँखों को पहचान लो,
जो बह चले तो रोकना मुश्किल होगा|
चटकने से पहले दिल के हालात जान लो,
जो टूटे तो जोड़ना मुश्किल होगा|
खफा होने का अंदाज़ पहचान लो,
जो जुदा हुए तो मिलना मुश्किल होगा|
खामोश लबों का राज़ जान लो,
जो चुप हुए तो कुछ कहना मुश्किल होगा|
Chalte chalte achanak
jab ruk kar dekha
aas paas koi na tha
bas mai akeli khadi thi
mai aagey nikal aayi
ya log aagey badh gaye
ya ho sakta hai shayad
maine hi galat mod le liya
Mai toh wahi hu
badal hi nahi paayi
pata nhi kaise logon ne
itni jaldi khudko badal liya
Mere dost “khudgarzi” ne kaha
tere hi kaaran tu akeli hai
jo tu bhalai sikhaane nikal padi hai
dekh mere paas logon ka mela hai.
Door se “budhapa” aata dikhai diya
“usey ab jaakar meri yaad aayi”?
Mujhe gale lagane nhi aaya tha
usey to meri madad ki jarurat thi.
or bhi “gareeb” aur “laachar” aate dikhai diye
unhe bhi madad ki hi jarurat thi.
Par maine bhi kehkar inkaar kar diya,
kyu-
tumne mujhe rah dikhai thi ky
jab maine awaaz lagai thi!
nhiiii..
Mai bhi khudgarzi k paas ja rhi hu 😦
nhi Mai kyu khudko badal rahi hu!!
ab mujhe bhi apni taakat dikhani hai
wapas wahi bheed jutani hai ||
एक उलझी सी पहेली है
ये ज़िंदगी है, जो साथ मेरे चली है|
गम हो या खुशी, फिर भी ये रही है,
धूप और छाओं की ये सहेली है|
बेइंतेहा नफरत भी इसी से हुई है,
बस फिर भी, ये ज़िंदगी ही तो अपनी है !
ऐसी अपनी सहेली से प्यार क्यूँ ना करूँ,
थोड़ी मस्ती और खुशी, इसकी भी तो बनती है | 🙂