आईना कहाँ है मेरा?
एहसान नही भूलूंगी तेरा,
तेरी खिड़की पे
तूने मुझे घोंसला बनाकर दिया |
जब अंडा टूटा,
मैं बाहर निकली
तूने मुझे दुनिया से बचाया
तूने मेरे उड़ान सीखने तक
मुझे खिलाया, पानी पिलाया,
ये एहसान नही भूलूंगी तेरा|
पर,
जब उड़ान सीखी ही थी मैने,
तूने पकड़ कर पिंजड़े मे रख दिया?
पर जो अभी निकले ही थे,
तारों से टकरा कर टूटने भी लगे!
कभी तेरे घर के बाहर दुनिया देखी ही नही
सोचा मैने शायद,
यही दुनिया है मेरी,
मुझ जैसी चिड़िया पिंजरे के लिए ही बनी है|
एक दिन तेरे आँगन से
कुछ मुझ जैसों को ही उड़ते देखा,
आसमान में बादलों को छूते देखा
कभी खाना कभी पानी के लिए
डाल डाल भटकते देखा|
तो खुदसे ही ये सवाल किया,
-कौन हूँ मैं?
-पहचान क्या है मेरी?
-आईना कहाँ है मेरा..
–काँच या बहती नदियाँ?
एहसान नही भूलूंगी तेरा
पर आज पिंजरा खुला है तो
तो ये उड़ने का मौका भी नही छोड़ूँगी
पर वादा है,
तेरे आँगन मे आके रोज़ सुबह चहचाहाउंगी
एहसान नही भूलूंगी तेरा||
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